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एकोनाशीतितमं पर्व
ततश्च पद्मनाभस्य लचमणस्य च पार्थिव । कर्तव्या सुमहाभूतिः कथा लङ्काप्रवेशने ॥१॥ महाविमानसङ्घातैघंटामिश्च सुदन्तिनाम् । परमैरश्ववृन्दैश्च रथैश्च भवनोपमैः ॥२॥ निकुञ्जजप्रतिस्वानबधिरीकृतदिङमुखैः । वादिवनिःस्वनै रम्यैः शङ्खस्वनविमिश्रितैः ॥३॥ विद्याधरमहाचक्रसमेतौ परमाती । बलनारायणी लङ्कां प्रविष्टाविन्द्रसन्निभौ ॥४॥ दृष्टा तौ परमं हर्ष जनता समुपागता। मेने जन्मान्तरोपात्तधर्मस्य विपुलं फलम् ।।५।। तस्मिन् राजपथे प्राप्त बलदेवे सचक्रिणि । व्यापाराः पौरलोकस्य प्रयाता: क्वापि पूर्वकाः ।।६।। विकचाक्षेमुखैः स्त्रीणां जालमार्गास्तिरोहिताः । सनीलोत्पलराजीवैरिव रेजुनिरन्तरम् ॥७॥ महाकौतुकयुक्तानामाकुलानां निरीक्षणे । तासां मुखेषु निश्चेरुरिति वाचो मनोहराः ।।८।। सखि पश्यैष रामोऽसौ राजा दशरथात्मजः । राजत्युत्तमया योऽयं रत्नराशिरिव श्रिया ॥३॥ सम्पूर्णचन्द्रसङ्काशः पुण्डरीकायतेक्षणः । अपूर्वकर्मणां सर्गः कोऽपि स्तुत्यधिकाकृतिः ॥१०॥ इमं या लभते कन्या धन्या रमणमुत्तमम् । कीर्तिस्तम्भस्तया लोके स्थापितोऽयं स्वरूपया ॥११॥ परमश्चरितो धर्मश्चिरं जन्मान्तरे यया। ईदृशं लभते नाथं सा सुनारी कुतोऽपरा ॥१२॥ सहायतां निशास्वस्य या नारी प्रतिपद्यते । सैवका योषितां मूनि वर्तते परया तु किम् ॥१३॥ स्वर्गतः प्रच्युता नूनं कल्याणी जनकात्मजा । इमं रमयति श्लाघ्यं पतिमिन्द्रं शचीव या ॥१४॥
अथानन्तर गौतम स्वामी राजा श्रेणिकसे कहते हैं कि हे राजन् ! अब राम और लक्ष्मण का महावैभव के साथ लङ्कामें प्रवेश हुआ, सो उसकी कथा करना चाहिए ।।१।। महाविमानोंके समूह, उत्तम हाथियोंके घण्टा, उत्कृष्ट घोड़ोंके समूह, मन्दिर तुल्य रथ, लतागृहोंमें गूंजने वाली प्रतिध्वनिसे जिनने दिशाएँ बहरी कर दी थीं तथा जो शङ्खके शब्दोंसे मिले थे ऐसे वादित्रोंके मनोहर शब्दोंसे तथा विद्याधरोंके महा चक्रसे सहित, उत्कृष्ट कान्तिके धारक, इन्द्र समान राम और लक्ष्मणने लङ्कामें प्रवेश किया ॥२-४॥ उन्हें देख जनता परम हर्षको प्राप्त हुई और जन्मान्तर में संचित धर्मका महा फल मानती हुई ॥५॥ जब चक्रवर्ती-लक्ष्मणके साथ बलभद्र-श्री राम राज पथमें आये तब नगरवासी जनोंके पूर्व व्यापार मानों कहीं चले गये अर्थात् जे अन्य सब कार्य छोड़ इन्हें देखने लगे ॥६॥ जिनके नेत्र फूल रहे थे, ऐसे स्त्रियोंके मुखोंसे आच्छादित झरोखे निरन्तर इस प्रकार सुशोभित हो रहे थे मानो नीलकमल और लाल कमलोंसे ही युक्त हों ।।७।। जो राम-लक्ष्मणके देखने में आकुल हो महा कौतुकसे युक्त थीं ऐसी उन स्त्रियों के मुखसे इस प्रकार के मनोहर वचन निकलने लगे ॥८।। कोई कह रही थी कि सखि ! देख, ये दशरथके पुत्र राजा रामचन्द्र हैं जो अपनी उत्तम शोभासे रत्न राशिके समान सुशोभित हो रहे हैं ॥६॥ जो पूर्ण चन्द्रमाके समान हैं, जिनके नेत्र पुण्डरीकके समान विशाल हैं तथा जिनकी आकृति स्तुतिसे अधिक है ऐसे ये राम मानों अपूर्व कर्मों की कोई अद्भुत सृष्टि ही हैं ॥१०॥ जो कन्या इस उत्तम पतिको प्राप्त होती है वही धन्या है तथा उसी सुन्दरीने लोकमें अपनी कीर्तिका स्तम्भ स्थापित किया है ॥११।। जिसने जन्मान्तरमें चिर काल तक परम धर्मका आचरण किया है वही ऐसे पतिको प्राप्त होती है । उस स्त्रीसे बढ़कर और दूसरी उत्तम स्त्री कौन होगी ? ॥१२।। जो स्त्री रात्रिमें इसकी सहायताको प्राप्त होती है वही एक मानों स्त्रियोंके मस्तक पर विद्यमान है अन्य स्त्रीसे क्या प्रयोजन है ? ॥१३।। कल्याणवती जानकी निश्चित हो स्वर्गसे च्युत हुई है जो इन्द्राणीके समान इस प्रशंसनीय पतिको रमण कराती है ॥१४॥
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