________________
पद्मपुराणे
उद्यानान्यधिकां शोभां दधुः पुष्पफलाकुलाम् । वाप्यः पद्मोत्पलच्छन्ना जाताः शकुनिनादिताः ||८६|| कैलाससानुसङ्काशाः प्रासादाश्चारुलक्षणाः । विमानप्रतिमा रेजुः विलोचनमलिम्लुचाः ॥८७॥ सुवर्णधान्यरत्नाढ्याः सम्मेदशिखरोपमाः । नरेन्द्रख्यातयः श्लाध्या जाताः सर्वकुटुम्बिनः ||८|| राजानस्त्रिदशैस्तुल्या असमान विभूतयः । धर्मार्थकामसंसक्ताः साधुचेष्टापरायणाः ॥८६॥ प्रयच्छन्निच्छया तेषामाज्ञां विज्ञानसङ्गतः । रराज पुरि शत्रुघ्नः सुराणां वरुणो यथा ॥१०॥
१८२
आर्यागीतिच्छन्दः
एवं मथुरापुर्यां निवेशमत्यद्भुतं च सप्तर्षीणाम् ।
शृण्वन् कथयन्वापि प्राप्नोति जनश्चतुष्टयं भद्र नरम् ॥ ६१॥
साधुसमागमसक्ताः पुरुषाः सर्वमनीषितं सेवन्ते ।
तस्मात् साधुसमागममाश्रित्य सदारवेः समान्य दीप्ताः ॥ ६२ ॥
इत्यार्षे श्रीरविषेणाचार्य प्रोक्ते पद्मपुराणे मथुरापुरीनिवेशऋषिदानगुणोपसर्ग हननाभिधानं नाम द्विनवतितमं पर्व ॥६२॥
बड़े वृक्षोंके निवास गृहके समान जान पड़ती थीं ऐसी परिखा उसके चारों ओर सुशोभित हो रही थी ||५|| वहाँके बाग-बगीचे फूलों और फलोंसे युक्त अत्यधिक शोभाको धारण कर रहे थे और कमल तथा कुमुदोंसे आच्छादित वहाँकी वापिकाएँ पक्षियोंके नादसे मुखरित हो रही थीं ॥८६॥ जो कैलासके शिखरों के समान थे, सुन्दर-सुन्दर लक्षणों से युक्त थे, तथा नेत्रोंके चोर थे ऐसे वहाँ के भवन विमानोंके समान सुशोभित हो रहे थे ||८७|| वहाँ के सर्व कुटुम्बी सुवर्ण अनाज तथा रत्न आदि से सम्पन्न थे, सम्मेद शिखरकी उपमा धारण करते थे, राजाओंके समान प्रसिद्धि से युक्त तथा अत्यन्त प्रशंसनीय थे ||८|| वहाँ के राजा देवोंके समान अनुपम विभूतिके धारक थे, धर्म, अर्थ और काममें सदा आसक्त रहते थे तथा उत्तम चेष्टाओं के करनेमें निपुण थे ॥६॥ इच्छानुसार उन राजाओंपर आज्ञा चलाता हुआ विशिष्ट ज्ञानी शत्रुघ्न मथुरा नगरीमें उस प्रकार सुशोभित होता था जिस प्रकार कि देवोंपर आज्ञा चलाता हुआ वरुण सुशोभित होता है ||६|| गौतमस्वामी कहते हैं कि जो इस प्रकार मथुरापुरी में सप्तर्षियोंके निवास और उनके आश्चर्यकारी प्रभावको सुनता अथवा कहता है वह शीघ्र ही चारों प्रकारके मङ्गलको प्राप्त होता है ॥ ६१ ॥ जो मनुष्य साधुओंके समागम में सदा तत्पर रहते हैं वे सर्व मनोरथोंको प्राप्त होते हैं इसीलिए हे सत्पुरुपो ! साधुओं का समागमकर सदा सूर्यके समान देदीप्यमान होओ ॥६२॥
इस प्रकार
नामसे प्रसिद्ध रविषेणाचार्य द्वारा कथित पद्मपुराण में मथुरापुरी में सप्तर्षियोंके निवास, दान, गुण तथा उपसर्गके नष्ट होनेका वर्णन करनेवाला बानबेवाँ पर्व समाप्त हुआ ||२||
१. रत्नाद्याः म० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org