________________
षण्णवतितम पर्व
२०१
वसन्ततिलकावृत्तम् स्नेहापवादभयसङ्गतमानसस्य व्यामिश्रतीवरसवेगवशीकृतस्य । रामस्य गाढपरितापसमाकुलस्य कालस्तदा निरुपमः स बभूव कृच्छ्रः ॥७२॥
वंशस्थवृत्तम् विरुद्ध पूर्वोत्तरमाकुलं परं विसन्धिसातेतरवेदनान्वितम् । अभूदिदं केसरिकेतुचिन्तनं निदाघमध्याहरवेः सुदुःसहम् ॥७३॥
इत्याचे श्रीरविषेणाचार्य पोक्ते पद्मपुराणे जनपरीवादचिन्ताभिधानं नाम परणवतितमं पर्व ॥६६॥
कृपण नहीं होगा ॥७१।। गौतम स्वामी कहते हैं कि जिनका मन स्नेह अपवाद और भयसे संगत था, जो मिश्रित तीव्र रसके वेगसे वशीभूत थे, तथा जो अत्यधिक संतापसे व्याकुल थे ऐसे रामका वह समय उन्हें अनुपम दुःख स्वरूप हुआ था ॥७२।। जिसमें पूर्वापर विरोध पड़ता था जो अत्यन्त आकुलता रूप था, जो स्थिर अभिप्रायसे रहित था और दुःखके अनुभवसे सहित था ऐसा यह रामका चिन्तन उन्हें ग्रीष्म ऋतु सम्बन्धी मध्याह्नके सूर्यसे भी अधिक अत्यन्त दुःसह था ||७३||
इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध श्री रविषेणाचार्य द्वारा कथित पद्मपुराण में लोकनिन्दाकी
चिन्ताका उल्लेख करनेवाला छियानबेवाँ पर्व समाप्त हुआ ॥६६॥
१. विसन्ति-ज० (१)
२६-३ Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org