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षडुत्तरशतं पर्व
नष्टानां विषयान्धकारगहने संसारवासे भव
त्वं दीपः शिवलब्धिकांक्षणमहातृड्खेदित्तानां सरः । वह्निः कर्म समूहका दहने व्यग्रीभवश्चेतसां
नानादुःखमहातुषारपतनव्याकम्पितानां रविः ॥ २४८ ॥
इत्यार्षे श्रीरविषेणाचार्य प्रणीते श्रीपद्मचरिते सपरिवर्गरामदेवपूर्वभवाभिधानं नाम षडुत्तरशतं पर्व ॥१०६ ॥
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प्रदान कीजिए || २४७|| हे नाथ ! विषयरूपी अन्धकार से व्याप्त संसार वासमें भूले हुए प्राणियों के आप दीपक हो, मोक्षप्राप्तिकी इच्छारूप तीव्र प्यास से पीड़ित मनुष्योंके लिए सरोवर हो, कर्मसमूहरूपी वनको जलाने के लिए अग्नि हो, तथा व्याकुलचित्त एवं नाना दुःखरूपी महातुषार के पड़ने से कम्पित पुरुषों के लिए सूर्य हो || २४८ ||
इस प्रकार श्रार्ष नामसे प्रसिद्ध, रविषेणाचार्य प्रणीत पद्मपुराण में परिवर्ग सहित रामदेव के पूर्वभवोंका वर्णन करनेवाला एक सौ छठवाँ पर्व समाप्त हुआ ॥ १०६ ॥
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