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नवोत्तरशतं पर्व
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अनुष्टुप् मधोरिन्द्रस्य संभूतिरेषा ते कथिता मया। सीता यस्य प्रतिस्पर्धी संभूतः पाकशासनः ॥१७२॥
वंशस्थवृत्तम् अतः परं चित्तहरं मनीषिणां कुमारवीराष्टकचेष्टितं परम् ।
वदामि पापस्य विनाशकारणं कुरु श्रुतौ श्रेणिक भूभृतां रवे ॥१७३॥ इत्यार्षे श्रीरविषेणाचार्यप्रोक्ते पद्मपुराणे मधूपाख्यानं नाम नवोत्तरशतं पर्व ॥१०६॥
करनेसे तो मोक्षनगर तक पहुँच जाते हैं ॥१७१।। हे श्रेणिक ! मैंने तेरे लिए उस मधु इन्द्रकी उत्पत्ति कही जिसकी कि प्रतिस्पर्धा करनेवाली सीता प्रतीन्द्र हुई है ॥१७२।। हे राजाओंके सूर्य ! श्रेणिक महाराज ! अब मैं इसके आगे विद्वानोंके चित्तको हरनेवाला, आठ वीर कुमारोंका वह चरित्र कहता हूँ कि जो पापका नाश करनेवाला है, उसे तू श्रवण कर ।।१७३।। इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध, रविषेणाचार्य द्वारा कथित पद्मपुराणमें मधुका वर्णन
करनेवाला एक सौ नौवाँ पर्व पूर्ण हुआ ॥१०॥
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