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पद्मपुराणे
सिंहताय॑महाविये रामलचमणयोस्तयोः । उत्पन्ने बन्दितां नीतास्ताम्यामिन्द्रजितादयः॥२७॥ चक्ररत्नं समासाद्य येनाऽघाति दशाननः । अधुना कालचक्रेण लक्ष्मणोऽसौ निपातितः ॥२८॥ आसंस्तस्य भुजच्छायां श्रित्वा मत्ता प्लवङ्गमाः । साम्प्रतं लूनपक्षास्ते परमास्कन्धतो गताः ॥२६॥ अद्यास्ति द्वादशः पत्तो राघवस्येयुषः शुचम् । प्रेताचं वहमानस्य व्यामोहः कोऽपरोऽस्त्वतः ॥३०॥ यद्यप्यप्रतिमल्लोऽसौ हलरत्नादिमर्दनः । तथापि लच्चित्तुं शक्यः शोकपतगतोऽभवत् ॥३१॥ तस्येव बिभिमस्त्वस्थ न जात्वन्यस्य कस्यचित् । यस्यानुजेन विश्वस्ता सर्वास्मद्वंशसङ्गतिः ॥३२॥ अथैन्द्रजितिराकय व्यसनं स्वोरुगोत्रजम् । प्रतिद्यासितमार्गेण जज्वाल क्षुब्धमानसः ॥३३॥ आज्ञाप्य सचिवान् सर्वान् भेर्या संयति राजितान् । प्रययौ प्रति साकेतं सुन्दतोकसमन्वितः ॥३४॥ सैन्याकूपारगुप्तौ तौ सुग्रीवं प्रति कोपितौ' । पद्मनाभमयासिष्टां प्रकोपयितुमुद्यतौ ॥३५॥ वज्रमालिनमायातं श्रुत्वा सौन्दिसमन्वितम् । सर्वे विद्याधराधीशा रघुचन्द्रमशिश्रियन् ॥३६॥ वितानतां परिप्राप्ता क्षुब्धाऽयोध्या समन्ततः । लवणाशयोयद्वदागमे भीतिवेपिता ॥३७॥ भरातिसैन्यमभ्यर्णमालोक्य रघुभास्करः । कृत्वाके लक्षणं सत्त्वं वहमानस्तथाविधम् ॥३॥ उपनीतं समं बाणेर्वज्रावर्तमहाधनुः । आलोकत स्वभावस्थं कृतान्तभूलतोपमम् ॥३३॥ एतस्मिन्नन्तरे नाके जातो विष्टरवेपथुः । कृतान्तवक्त्रदेवस्य जटायुत्रिदशस्य च ॥४०॥
अनेक द्वीप नष्ट किये ॥२६॥ राम-लक्ष्मणको सिंहवाहिनी एवं गरुडवाहिनी नामक विद्याएँ प्राप्त हुई। उनके प्रभावसे उन्होंने इन्द्रजित आदिको बन्दी बनाया ॥२७॥ तथा जिस लक्ष्मणने चक्ररत्न पाकर रावणको मारा था इस समय वही लक्ष्मण कालके चक्रसे मारा गया है ॥२८॥ उसकी भुजाओंकी छाया पाकर वानरवंशी उन्मत्त हो रहे थे पर इस समय वे पक्ष कट जानेसे अत्यन्त आक्रमणके योग्य अवस्थाको प्राप्त हुए हैं। शोकको प्राप्त हुए रामको आज बारहवाँ पक्ष है वे लक्ष्मणके मृतक शरीरको लिये फिरते हैं अतः कोई विचित्र प्रकारका मोह-पागलपन उनपर सवार है ॥२६-३०॥ यद्यपि हल-मुसल आदि शस्त्रोंको धारण करनेवाले राम अपनी सानी नहीं रखते तथापि इस समय शोकरूपी पंकमें फंसे होनेके कारण उनपर आक्रमण करना शक्य है ॥३१॥ यदि हमलोग डरते हैं तो एक उन्हींसे डरते हैं और किसीसे नहीं जिनके कि छोटे भाई लक्ष्मणने हमारे वंशकी सब संगति नष्ट कर दी ॥३२॥
अथानन्तर इन्द्रजितका पुत्र वनमाली अपने विशाल वंशपर उत्पन्न पूर्व संकटको सुनकर क्षुभित हो उठा और प्रसिद्ध मार्गसे प्रज्वलित होने लगा अर्थात् क्षत्रिय कुल प्रसिद्ध तेजसे दमकने लगा ॥३३॥ वह मन्त्रियोंको आज्ञा दे तथा भेरीके द्वारा सब लोगोंको युद्ध में इकट्ठाकर सुन्दपुत्र चारुरत्नके साथ अयोध्याकी ओर चला ॥३४॥ जो सेना रूपी समुद्रसे सुरक्षित थे तथा सुग्रीवके प्रति जिनका क्रोध उमड़ रहा था ऐसे वे दोनों-वज्रमाली और चारुरत्न, रामको कुपित करनेके लिए उद्यत हो उनकी ओर चले ॥३५॥ चारुरत्नके साथ वनमालीको आया सुन सब विद्याधर राजा रामचन्द्रके पास आये ॥३६।। उस समय अयोध्या किंकर्तव्यमूढ़ताको प्राप्त हो सब ओरसे क्षुभित हो उठी तथा जिस प्रकार लवणांकुशके आनेपर भयसे काँपने लगी थी उसी प्रकार भयसे काँपने लगी ॥३७॥ अनुपम पराक्रमको धारण करनेवाले रामने जब शत्रुसेनाको निकट देखा तब वे मृत लक्ष्मणको गोदमें रख वाणोंके साथ लाये हुए उस वावर्त नामक महाधनुषकी ओर देखने लगे कि जो अपने स्वभावमें स्थित था तथा यमराजको भृकुटि रूपी लताके समान कुटिल था॥ ३८-३६॥
इसी समय स्वर्गमें कृतान्तवक्त्र सेनापति तथा जटायु पक्षीके जीव जो देव हुए थे उनके
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