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दशाधिकशतं पर्व
एतत् कुमाराष्टकमङ्गलं यः पठेद् विनीतः शृणुयाच भक्त्या । तस्य क्षयं याति समस्तपापं रविप्रभस्योदयते च चन्द्रः ॥१५॥
इत्याचे श्रीरविषेणाचार्य प्रणीते कुमाराष्टकनिष्क्रमणाभिधानं नाम दशोत्तरशतं पर्व ॥११०॥
समस्त प्रपञ्च नष्ट कर दिया था ऐसे वे आठों मुनि अनन्त सुखसे युक्त निर्वाण पदको प्राप्त हुए । ॥६४॥ गौतम स्वामी कहते हैं कि जो मनुष्य विनीत हो भक्ति पूर्वक इन आठ कुमारोंके मङ्गलमय चरितको पढ़ता अथवा सुनता है सूर्य के समान कान्तिको धारण करनेवाले उस मनुष्यका सब पाप नष्ट हो जाता है तथा उत्तम चन्द्रमाका उदय होता है ||६||
इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध, श्री रविषेणाचार्य द्वारा प्रणीत पद्मपुराणमें आठ
कुमारोंकी दीक्षाका वर्णन करनेवाला एक सौ दसवाँ पर्व समाप्त हुआ ॥११०॥
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