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सप्तोत्तरशतं पर्व
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अनुष्टुप् 'एतत् पद्मस्य चरितं यो निबोधति संततम् । अपापो लभते लक्ष्मी स भाति च परं रवेः ॥६॥
इत्याचे श्रीपद्मचरिते श्रीरविषेणाचार्यप्रोक्त प्रव्रजितसीताभिधानं नाम सप्तोत्तरशतं पर्व ॥१०॥
गौतमस्वामी कहते हैं कि जो मनुष्य रामके इस चरितको निरन्तर जानता है-अच्छी तरह इसका अध्ययन करता है वह निष्पाप हो लक्ष्मी प्राप्त करता है तथा सूर्यसे भी अधिक शोभायमान होता है ॥६॥ इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध, श्री रविषेणाचार्य द्वारा कथित श्री पद्मपुराण में सीताकी दीक्षा
का वर्णन करनेवाला एक सौ सातवाँ पर्व समाप्त हुआ ॥१०७॥
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