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षडुत्तरशतं पर्व वृषभः खेचराणां तद्भक्तिभूषो विभीषणः । निर्भीषणमहा भूषं वृषभं व्योमवाससाम् ॥१॥ पाणियुग्ममहाम्भोजभूपितोत्तमदेहभृत् । स नमस्कृत्य पप्रच्छ धीमान् सकलभूषणम् ॥२॥ भगवन् पद्मनाभेन किमनेन भवान्तरे । सुकृतं येन माहात्म्यं प्रतिपन्नोऽयमीदृशम् ॥३॥ अस्य पत्नी सती सीता दण्डकारण्यवर्तिनः । केनानुबन्धदोषेण रावणेन तदा हृता ॥४॥ धर्मार्थकाममोक्षेषु शास्त्राणि सकलं विदन् । कृत्याकृत्यविवेकज्ञो धर्माधर्मविचक्षणः ॥५॥ प्रधानगुणसम्पन्नो मूत्वा मोहवशं गतः । पतङ्गत्वमितः कस्मात्परस्त्रीलोभपावके ॥६॥ भ्रातृपक्षातिसक्तेन भूत्वा वनविचारिणा । लक्ष्मीधरेण संग्रामे स कथं भुवि मूञ्छितः ॥७॥ स तादृग्बलवानासीद्विद्याधरमहेश्वरः । कृतानेका द्भुतः प्राप्तः कथं मरणमीदशम् ॥८ अथ केवलिनो वाणी जगाद बहजन्मनाम् । संसारे परमं वैरमेतेनासीत्सहानयोः ॥६॥ इह जम्बूमतिद्वीपे भरते क्षेत्रनामनि । नगरे नयदत्ताख्यो वाणिजोऽभूत्समस्वकः ॥१०॥ सुनन्दा गहिनी तस्य धनदत्तः शरीरजः। द्वितीयो वसुदत्तस्तत्सुहृद्यज्ञबलिद्विजः ॥११॥ वणिक्सागरदत्ताख्यस्तत्रैव नगरेऽपरः। पत्नी रत्नप्रभा तस्य गुणवत्युदितात्मजा ॥१२॥ रूपयौवनलावण्यकान्तिसद्विभ्रमात्मिका । अनुजो गुणवानामा तस्या आसीत्सुचेतसः ॥१३॥
अथानन्तर जो विद्याधरों में प्रधान था. रामकी भक्ति ही जिसका आभषण थी, और जो ___ हस्तयुगलरूपी महाकमलोंसे सुशोभित मस्तकको धारण कर रहा था ऐसे बुद्धिमान् विभीषणने निर्भय तेजरूपी आभूषणसे सहित एवं निर्ग्रन्थ मुनियों में प्रधान उन सकलभूषण केवलीको नमस्कार कर पूछा कि ॥१-२॥ हे भगवन् ! इन रामने भवान्तरमें ऐसा कौन-सा पुण्य किया था जिसके फलस्वरूप ये इस प्रकारके माहात्म्यको प्राप्त हुए हैं ॥३॥ जब ये दण्डकवनमें रह गये थे तब इनकी पतिव्रता पत्नी सीताको किस संस्कार दोषसे रावणने हरा था ॥४॥ रावण धर्म, अर्थ, काम और मोक्षविषयक समस्त शास्त्रोंका अच्छा जानकार था, कृत्य-अकृत्यके विवेकको जानता था और धर्म-अधर्मके विषयमें पण्डित था। इस प्रकार यद्यपि वह प्रधान गुणोंसे सम्पन्न था तथापि मोहके वशीभूत हो वह किस कारण परस्त्रीके लोभरूपी अग्निमें पतङ्गपनेको प्राप्त हुआ था ? ॥५-६॥ भाईके पक्षमें अत्यन्त आसक्त लक्ष्मणने वनचारी होकर संग्राममें उसे कैसे मार दिया ॥७॥ रावण वैसा बलवान , विद्याधरोंका राजा और अनेक अद्भुत कार्योंका कर्ता होकर भी इस प्रकारके मरणको कैसे प्राप्त हो गया ? ॥८॥ ___तदनन्तर केवली भगवान्की वाणीने कहा कि इस संसारमें राम-लक्ष्मणका रावणके साथ अनेक जन्मसे उत्कट वैर चला आता था ।।६।। जो इस प्रकार है-इस जम्बूद्वीपके भरतक्षेत्रमें एकक्षेत्र नामका नगर था उसमें नयदत्त नामका एक वणिक् रहता था जो कि साधारण धनका स्वामी था । उसकी सुनन्दा नामकी स्त्रीसे एक धनदत्त नामका पुत्र था जो कि रामका जीव था, दूसरा वसुदत्तनामका पुत्र था जो कि लक्ष्मणका जीव था। एक यज्ञवलिनामका ब्राह्मण वसुदेवका मित्र था सो तुम-विभीषणका जीव था॥१०-११।। उसी नगर में एक सागरदत्त नामक दूसरा वणिक रहता था, उसकी स्त्रीका नाम रत्नप्रभा था और दोनोंके एक गुणवती नामकी पुत्री थी जो कि सीताकी जीव थी॥१२॥ वह गुणवती, रूप, यौवन, लावण्य, कान्ति और उत्तम विभ्रमसे युक्त थी । सुन्दर चित्तको धारण करनेवाली उस गुणवतीका एक गुणवान नामका छोटा भाई था
१. महाभूषं म० । २. कृतानेकाद्भुतं म० । ३. ससारो ख ।
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