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पद्मपुराणे
राम इत्यादितस्तेषामभिरामः समन्ततः । भद्यः सर्वश्रुतज्ञोऽपि विश्रुतः सर्वविष्टपे ।। १६ ।। लक्ष्मणेनानुजेनासौ सीतया च द्वितीयया । जनकस्य नरेन्द्रस्य सुतयाऽयन्नभक्तया ॥१७॥ ' जानकं पालयन् सत्यं कृत्वाऽयोध्यां वितानिकाम् । छद्मस्थः पर्यटन् क्षोणीं प्राविज्ञद्दण्डकं वनम् ॥ १८ ॥ स्थानं तत्र परं दुर्गं महाविद्याभृतामपि । सोऽध्यास्त स्त्रैणवृत्तान्तं जातं चन्द्रनखाभवम् ॥ १६ ॥ संग्रामे वेदितुं वार्तां पद्मोऽगादनुजस्य च । दशग्रीवेण वैदेही हृता च छलवर्त्तिना ॥ २० ॥ ततो महेन्द्र किष्किन्धश्रीशैलमलयेश्वराः । नृपा विराधिताद्याश्च प्रधानाः कपिकेतवः ॥२१॥ महासाधनसम्पन्ना महाविद्या पराक्रमाः । रामगुणानुरागेण पुण्येन च समाश्रिताः ॥२२॥ लङ्केश्वरं रणे जित्वा वैदेही पुनराहृता । देवलोकपुरीतुल्या विनीता च कृता खगैः ॥२३॥ तत्र तौ परमैश्वर्यसेवितौ पुरुषोत्तमौ । नागेन्द्राविव मोदेते सन्मुखं रामलक्ष्मणौ ॥२४॥ रामो वां न कथं ज्ञातो यस्य लक्ष्मीधरोऽनुजः । चक्रं सुदर्शनं यस्य मोघतापरिवर्जितम् ॥२५॥ एकैकं रच्यते यस्य तदेकगतचेतसा । रत्नं देवसहस्रेण गजराजस्य कारणम् ॥ २६ ॥ सन्त्यक्ता जानकी येन प्रजानां हितकाम्यया । तस्य रामस्य लोकेऽस्मिन्नास्ति कश्चिदवेदकः ॥२७॥ आस्तां तावदयं लोकः स्वर्गेऽप्यस्य गुणैः कृताः । मुखरा देवसङ्घातास्तत्परायणचेतसः ॥२८॥ ततोऽङ्कुश जगादासौ मुने रामेण जानकी । कस्य हेतोः परित्यक्ता वद वाञ्छामि वेदितुम् ॥२६॥ ततः कथितनिःशेषवृत्तान्तमिदमभ्यधात् । तद्गुणाकृष्टचेतस्को देवर्षिः सातवीक्षणः ॥३०॥
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महाभार उठाने में जिनकी चेष्टाएँ समर्थ हैं तथा जो गुणोंसे सम्पन्न हैं ऐसे उनके सुनय के समान चार पुत्र हैं ||१५|| उन सब पुत्रोंमें राम प्रथम पुत्र हैं जो सब ओरसे सुन्दर हैं तथा सर्वशाखों के ज्ञाता होनेपर भी जो समस्त संसारमें विभ्रम अर्थात् शास्त्रसे रहित ( पक्ष में - प्रसिद्ध ) हैं ||१६|| अपने छोटे भाई लक्ष्मण और स्त्री सीताके साथ जो कि राजा जनककी पुत्री थी तथा अत्यन्त भक्त थी, पिताके सत्यकी रक्षा कराते हुए अयोध्याको सूनीकर छद्मस्थवेष में पृथिवीपर भ्रमण करने लगे तथा भ्रमण कते हुए दण्डकवनमें प्रविष्ट हुए ।।१७-१८ | वहाँ महाविद्याधरोंके लिए भी अत्यन्त दुर्गम स्थानमें वे रहते थे और वहीं चन्द्रनखा सम्बन्धी स्त्रीका वृत्तान्त हुआ अर्थात् चन्द्रनखाने अपना त्रियाचरित्र दिखाया ॥ १६ ॥ उधर राम, छोटे भाई की वार्ता जानने के लिए युद्ध में गये उधर कपटवृत्ति रावणने सीताका हरण कर लिया ||२०|| तदनन्तर महेन्द्र, किष्किन्ध, श्रीशैल और मलयके अधिपति तथा विराधित आदि प्रधान प्रधान वानरवंशी राजा जो कि महासाधनसे सम्पन्न और विद्यारूप महापराक्रमके धारक थे, रामके गुणों के अनुरागसे अथवा अपने पुण्योदयसे इनके समीप आये और युद्ध में रावणको जीतकर सीताको वापिस ले आये । विद्याधरोंने अयोध्याको स्वर्गपुरी के समान कर दिया ||२१-२३ || परम ऐश्वर्य से सेवित, पुरुषोंमें उत्तम श्रीराम लक्ष्मण वहाँ नागेन्द्रोंके समान एक दूसरेके सम्मुख आनन्दसे समय बिताते थे ||२४|| अथवा अभीतक आप दोनोंको उन रामका ज्ञान क्यों नहीं हुआ जिनका कि वह लक्ष्मण अनुज हैं, जिनके पास कभी व्यर्थ नहीं जाने बाला सुदर्शन चक्र विराजमान है ॥२५॥ इसके सिवाय जिसके पास ऐसे और भी रत्न हैं जिनकी एकाग्रचित्त होकर प्रत्येककी हजारहजार देव रक्षा करते हैं तथा जो उसके राजाधिराजत्वके कारण हैं ॥ २६ ॥ जिन्होंने प्रजा के हित की इच्छा से सीताका परित्याग कर दिया, इस संसार में ऐसा कौन है जो रामको नहीं जानता हो ॥२७॥ अथवा इस लोककी बात जाने दो इसके गुणोंसे स्वर्ग में भी देवों के समूह शब्दायमान तथा तत्परचित्त हो रहे हैं ||२८||
तदनन्तर अङ्कुशने कहा कि हे मुने ! रामने सीता किस कारण छोड़ी सो कहो मैं जानना चाहता हूँ ||२६|| तत्पश्चात् सीताके गुणोंसे जिनका चित्त आकृष्ट हो रहा था तथा जिनके नेत्रों में
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१. जनकस्येदं जानकं पितृसम्बन्धि इत्यर्थः । २. सत्सुखं म० ।
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