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पद्मपुराणे
नूनं पूर्वत्र भवे सहोदरस्त्वं च बभूवावितथप्रीतः । हरसि तमो मे येन स्फीतं रविवद्विशुद्धात्मा ॥१०५॥
इत्यार्षे रविषेणाचार्यप्रोक्ते पद्मपुराणे सीतासमाश्वासनं नामाष्टनवतितमं पर्व ॥६८॥
करता है || १०४ || निश्चित ही तू पूर्वभवमें मेरा यथार्थ प्रेम करनेवाला भाई रहा होगा इसीलिए तो तू सूर्य के समान निर्मल आत्माका धारक होता हुआ मेरे विस्तृत शोक रूपी अन्धकारको हरण कर रहा है || १०५ ||
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. इस प्रकार श्रार्ष नामसे प्रसिद्ध, श्रीरविषेणाचार्यद्वारा विरचित पद्मपुराण में सीताको सान्त्वना देनेका वर्णन करनेवाला अठानबेवाँ पर्व समाप्त हुआ ||६८ ||
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