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'मकरन्दं प्रौढपादातमीनं विष्टतवरकरेणुग्राहजालं सशब्दम् । रविकिरण विषक्त प्रस्फुर खड्ग वीचिप्रतिभयमभवत्तत्सैन्यमम्भोधिकल्पम् ॥ १६२॥ इत्यार्षे श्रीरविषेणाचार्य प्रोक्ते पद्मपुराणे सीतानिर्वासनविप्रलापवज्रजङ्घगमनाभिधानं नाम सप्तनवतितमं पर्व ॥६७॥
पद्मपुराणे
घोड़ों के समूह ही जिसमें मगर थे, तेजस्वी पैदल सैनिक ही जिसमें मीन थे, हाथियों के समूह ही जिसमें प्राह थे, जो प्रचण्ड शब्दसे युक्त था और सूर्यकी किरणोंके पड़ने से चमकती हुई तलवार रूपी तरङ्गोंसे जो भय उत्पन्न करनेवाली थी ऐसी वह सेना समुद्रके समान जान पड़ती थी ॥ १६२ ॥
इस प्रकार आर्ष नाम से प्रसिद्ध रविषेणाचार्य द्वारा विरचित श्री पद्मपुराण में सीताके निर्वासन, विलाप और वज्रजङ्घके आगमनका वर्णन करनेवाला सतानबेवाँ पर्व समाप्त हुआ ||७||
१. अयं श्लोकः क० पुस्तके नास्ति ।
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