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चतुणवतितम पर्व
१८॥
सुरस्त्रीभिः समानानां स्त्रीणां सत्कुलजन्मनाम् । सहस्त्राण्यवबोध्यानि दश सप्त च लक्ष्मणे ॥१७॥ तासामष्टौ महादेव्यः कीर्तिश्रीरतिसन्निभाः । गुणशीलकलावत्यः सौम्याः सुन्दरविभ्रमाः ॥१८॥ तासां जगत्प्रसिद्धानि कीय॑मानानि भूपते । शृणु नामानि चारूणि यथावदनुपूर्वशः ॥१६॥ राज्ञः श्रीगोणमेघस्य विशल्याख्या सुतादितः । ततो रूपवती ख्याता प्रतिरूपविवर्जिता ॥२०॥ तृतीया वनमालेति वसन्तश्रीयुतेव सा। अन्या कल्याणमालाख्या नामाख्यातमहागुणा ॥२१॥ पञ्चमी रतिमालेति रतिमालेव रूपिणी । षष्ठी च जितपमेति जितपमा मुखश्रिया ॥२२॥ अन्या भगवती नाम चरमा च मनोरमा । अग्रपन्य इमा अष्टावुक्ता गरुडलचमणः ॥२३॥ दयिताष्टसहस्त्री तु पनाभस्थामरीसमा । चितस्त्रश्च महादेव्यो जगत्प्रख्यातकीर्तयः ॥२४॥ प्रथमा जानकी ख्याता द्वितीया च प्रभावती । ततो रतिनिभाऽभिख्या श्रीदामा च रमा स्मृता ॥२५॥ एतासां च समस्तानां मध्यस्था चारुलक्षणा । जानकी शोभतेऽस्यर्थ सतारेन्दुकला यथा ॥२६॥ द्वे शते शतमद्धं च पुत्राणां तार्यलचमणः । तेषां च कीर्तयिष्यामि शृणु नामानि कानिचित् ॥२७॥ वृषभो धरणश्चन्द्रः शरभो मकरध्वजः। धारणो हरिनागश्च श्रीधरो मदनोऽयुतः ॥२८॥ तेषामष्टौ प्रधानाच कुमाराश्चारुचेष्टिताः । अनुरक्ता गुणयषामनन्यमनसो जनाः ॥२६॥ विशल्यासुन्दरीसूनुः प्रथमं श्रीधरः स्मृतः । असौ पुरि विनीतायां राजते दिवि चन्द्रवत् ॥३०॥ ज्ञेयो रूपवतीपुत्रः पृथिवीतिलकाभिधः । पृथिवीतलविख्यातः पृथ्वी कान्ति समुद्वहन् ॥३१॥ पुत्रः कल्याणमालाया बहुकल्याणभाजनम् । बभूव मङ्गलाभिख्यो मङ्गलेकक्रियोदितः ॥३२॥
विमलप्रभनामाऽभूत् पद्मावत्यां शरीरजः । तनयोऽर्जुनवृक्षाख्यो वनमालासमुद्भवः ॥३३॥ गये ॥१५-१६।। जो देवाङ्गनाओंके समान थीं तथा उत्तम कुलमें जिनका जन्म हुआ था ऐसी सत्तरह हजार स्त्रियाँ लक्ष्मणकी थीं ॥१७॥ उन स्त्रियों में कीर्ति, लक्ष्मी और रतिकी समानता प्राप्त करनेवाली गुणवती, शीलवती, कलावती, सौम्य और सुन्दर चेष्टाओंको धारण करनेवाली आठ महादेवियाँ थीं ॥१८|| हे राजन् ! अब मैं यथा क्रमसे उन महादेवियोंके सुन्दर नाम कहता हूँ सो सुन ॥१६॥ सर्वप्रथम राजा द्रोणमेघकी पुत्री विशल्या, उसके अनन्तर उपमासे रहित रूपवती, फिर तीसरी वनमाला, जो कि वसन्तकी लक्ष्मीसे मानो सहित ही थी, जिसके नामसे ही महागुणोंकी सूचना मिल रही थी ऐसी चौथी कल्याणमाला, जो रतिमालाके समान रूपवती थी ऐसी पाँचवीं रतिमाला, जिसने अपने मुखसे कमलको जीत लिया था ऐसी छठवीं जितपद्मा, सातवीं भगवती और आठवीं मनोरमा ये लक्ष्मणकी आठ प्रमुख स्त्रियाँ थीं ॥२०-२३॥ रामचन्द्र जीको देवाङ्गनाओंके समान आठ हजार स्त्रियाँ थीं। उनमें जगत् प्रसिद्ध कीर्तिको धारण करनेवाली चार महादेवियाँ थीं ॥२४|| प्रथम सीता, द्वितीय प्रभावती, तृतीय रतिनिभा और चतुर्थ श्रीदामा ये उन महादेवियोंके नाम हैं ॥२५॥ इन सब खियोंके मध्यमें स्थित सुन्दर लक्षणों वाली सीता, ताराओंके मध्यमें स्थित चन्द्रकलाके समान सुशोभित होती थी ॥२६॥ लक्ष्मणके अढ़ाई सौ पुत्र थे उनमें से कुछके नाम कहता हूँ सो सुन ॥२७॥ वृषभ, धरण, चन्द्र, शरभ, मकरध्वज, धारण, हरिनाग, श्रीधर, मदन और अच्युत ।।२८।। जिनके गुणों में अनुरक्त हुए पुरुष अनन्यचित्त हो जाते थे ऐसे सुन्दर चेष्टाओंको धारण करने वाले आठ कुमार उन पुत्रोंमें प्रमुख थे ॥२६॥
उनमेंसे श्रीधर, विशल्या सुन्दरीका पुत्र था जो अयोध्यापुरीमें उस प्रकार सुशोभित होता था जिस प्रकार कि आकाशमें चन्द्रमा सशोभित होता है॥३०॥ रूपवतीके पुत्रका नाम पृथिवीतिलक था जो उत्तम कान्तिको धारण करता हआ पृथिवीतल पर अत्यन्त प्रसिद्ध था॥३१॥ कल्याणमालाका पुत्र मङ्गल नामसे प्रसिद्ध था वह अनेक कल्याणोंका पात्र था तथा माङ्गलिक क्रियाओंके करनेमें सदा तत्पर रहता था ॥३२॥ पद्मावतीके विमलप्रभ नामका पुत्र हुआ था।
१.सुखश्रिया म० । २. लक्ष्मणा म० । Jain Education International
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