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त्रिनवतितमं पर्व
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एवं प्रचण्डा अपि यान्ति 'साम रत्नान्यनर्घाणि च संश्रयन्तं ।
पुण्यानुभावेन यतो जनानां ततः कुरुवं रविनिर्मलं तत् ।।५७॥ इत्याचे श्रीरविषेणाचार्यप्रोक्ते पद्मपुराणे मनोरमालंभाभिधानं नाम त्रिनवतितम पर्व ॥३॥
लिए सार्थक नामवाली मनोरमा कन्या दी और उन दोनोंका उत्तम पाणिग्रहण हुआ ॥५६॥ गौतम स्वामी कहते हैं कि यतश्च इस तरह मनुष्यों के पुण्य प्रभावसे अत्यन्त क्रोधी मनुष्य भी शान्तिको प्राप्त हो जाते हैं और अमूल्य रत्न उन्हें प्राप्त होते रहते हैं इसलिए हे भव्यजनो! सूर्यके समान निर्मल पुण्यका संचय करो ॥५७॥ इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध, श्रीरविषेणाचार्यद्वारा कथित पद्मपुराणमें मनोरमाकी
प्राप्तिका कथन करनेवाला तेरानबेवाँ पर्व समाप्त हुआ ॥३॥
१. नाम म०, क०, ख०, न० ।
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