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पद्मपुराणे
अतिवीर्यस्य तनया श्रीकेशिनमसूत च । आत्मजो भगवत्याश्च सत्यकीर्तिः प्रकीर्तितः ॥३॥ सुपाश्वकीर्तिनामानं सुतं प्राप मनोरमा । सर्वे चैते महासस्वाः शस्त्रशाखविशारदाः ॥३५॥ नखमांसवदेतेषां भ्रातणां संगतिढा । सर्वत्र शस्यते लोके समानोचितचेष्टिता ॥३६।। अन्योन्यहृदयासीनाः प्रेमनिर्भरचेतसः। अष्टौ दिवीव वसवो रेमिरे स्वेप्सितं पुरि ॥३७॥ पूर्व जनितपुण्यानां प्राणिनां शुभचेतसाम् । आरभ्य जन्मतः सर्व जायते सुमनोहरम् ॥३८॥
उपजातिवृत्तम् । एवं च कास्न्येन कुमारकोटयः स्मृता नरेन्द्रप्रभवाश्चतस्त्रः । कोट्यर्द्धय पुरि तत्र शक्त्या ख्याता नितान्तं परया मनोज्ञाः ॥३६॥
आर्या नानाजनपदनिरतं परिगतमुकुटोत्तमाङ्गकं नृपचक्रम् ।
षोडशसहस्रसंख्यं बलहरिचरणानुगं स्मृतं रवितेजः॥४०॥ इत्याचे श्रीरविषेणाचार्यपोक्ते पद्मपुराणे रामलक्ष्मणविभूतिदर्शनीयाभिधानं नाम
चतुर्णवतितमं पर्व ॥४॥
वनमालाने अर्जुनवृक्ष नामक पुत्रको जन्म दिया था ॥३३॥ राजा अतिवीर्यकी पुत्रीने श्रीकेशी नामक पुत्र उत्पन्न किया था। भगवतीका पुत्र सत्यकीर्ति इस नामसे प्रसिद्ध था ॥३४|| और मनोरमाने सुपार्श्वकीर्ति नामक पुत्र प्राप्त किया था। ये सभी कुमार महाशक्तिशाली तथा शस्त्र और शास्त्र दोनोंमें निपुण थे ॥३५॥ इन सब भाइयोंकी नख और मांसके समान सुदृढ संगति थी तथा इन सबकी समान एवं उचित चेष्टा लोकमें सर्वत्र प्रशंसा प्राप्त करती थी ॥३६।। सो परस्पर एक दूसरेके हृदयमें विद्यमान थे तथा जिनके चित्त प्रेमसे परिपूर्ण थे ऐसे ये आठों कुमार स्वर्गमें आठ वसुओंके समान नगरमें अपनी इच्छानुसार क्रीड़ा करते थे ॥३७॥ गौतम स्वामी कहते हैं कि जिन्होंने पूर्व पर्यायमें पुण्य उत्पन्न किया है तथा जिनका चित्त शुभभाव रूप रहा है ऐसे प्राणियोंकी समस्त चेष्टाएँ जन्मसे ही अत्यन्त मनोहर होती हैं इस प्रकार उस नगरीमें सब मिलाकर साढ़े चार करोड़ राजकुमार थे जो उत्कृष्ट शक्तिसे प्रसिद्ध तथा अत्यन्त मनोहर थे ॥३८-३६।। जो नाना देशों में निवास करते थे, जिनके मस्तक पर मुकुट बँधे हुए थे, तथा जिनका तेज सूर्यके समान था ऐसे सोलह हजार राजा राम और लक्ष्मणके चरणोंकी सेवा करते थे ॥४०॥ इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध, श्रीरविषेणाचार्य द्वारा कथित पद्मपुराणामें राम-लक्ष्मणकी
विभूतिको दिखानेवाला चौरानबेवाँ पर्व समाप्त हुआ ॥६४||
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