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पञ्चनवतितमं पर्व
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देवीभिरनुपमाभिः सोऽष्टसहस्रप्रमाणससक्ताभिः । । रेजे निर्मलदेहस्ताराभिरिवावृतो ग्रहाणामधिपः ॥५५॥ अमृताहारविलेपनशयनासनवासगन्धमाल्यादिभवम् । शब्दरसरूपगन्धस्पर्शसुखं तत्र राम आपोदारम् ॥५६॥ एवं जिनेन्द्रभवने प्रतिदिनपूजाविधानयोगरतस्य । रामस्य रतिः परमा जाता रवितेजसः सुदारयुतस्य ॥५७॥
इत्याचे श्रीरविषेणाचर्यप्रोक्ते पद्मपुराणे जिनेन्द्रप्जादोहदाभिधानं नाम पञ्चनवतितमं पर्व ॥६५॥
आठ हजार प्रमाण अनुपम देवियोंसे घिरे हुए, निर्मल शरीरके धारक राम उस समय ताराओंसे घिरे हुए चन्द्रमाके समान सुशोभित हो रहे थे ॥५५॥ उस उद्यान में रामने अमृतमय आहार, विलेपन, शयन, आसन, निवास, गन्ध तथा माला आदिसे उत्पन्न होनेवाले शब्द, रस, रूप, गन्ध और स्पर्श सम्बन्धी उत्तम सुख प्राप्त किया था ॥५६॥ इस प्रकार जिनेन्द्र मन्दिर में प्रतिदिन पूजा-विधान करने में तत्पर सूर्य के समान तेजस्वी, उत्तम स्त्रियोंसे सहित रामको अत्यधिक प्रीति उत्पन्न हुई ॥५७॥
इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध, श्रीरविषेणाचार्य द्वारा कथित पद्मपुराणमें जिनेन्द्र
पूजारूप दोहलेका वर्णन करनेवाला पंचानबेवाँ पर्व पूर्ण हुआ ॥६५॥
१. आप+ उदारम् ।
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