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अशीतितम पर्व
ततस्तां समादित्यप्रबोधितमुखाम्बुजाम् । पाणावादाय हस्तेन समुत्तस्थौ हलायुधः ।।१।। ऐरावतोपमं नागमारोप्य स्ववशानुगम् । आरोपयन् महातेजाः समनां कान्तिमुद्वहन् ।॥२॥ चलद्धण्टाभिरामस्य नागमेघस्य पृष्ठतः । जानकीरोहिणीयुक्तः शुशुभे पनचन्द्रमाः ॥३॥ समाहितमतिः प्रीतिं दधानोऽत्यर्थमुन्नताम् । पूर्यमाणो जनौधेन महर्या परितो वृतः ॥४॥ महभिरनुयातेन खेचरैरनुरागिभिः । अन्वितश्चक्रहस्तेन लक्षमणेनोत्तमस्विषा ॥५॥ रावगस्य विमानाभं भवनं भुवनग्रुतेः' । पद्मनाभः परिप्राप्तः प्रविष्टश्च विचक्षणः ॥६॥ अपश्यच्च गृहस्थास्य मध्ये परमसुन्दरम् । भवनं शान्तिनाथस्य युक्तविस्तारतुगतम् ॥७॥ हेमस्तम्भसहस्रेण रचितं विकटयति । नानारत्नसमाकीर्ण भित्तिभागं मनोरमम् ॥८॥ विदेहमध्यदेशस्थमन्दराकारशोभितम् । क्षीरोदफेन पटलच्छायं नयनबन्धनम् ॥६॥ कणत्किकिणिकाजालमहाध्वजेविराजितम् । मनोज्ञरूपसङ्कीर्णमशक्यपरिवर्णनम् ॥१०॥ उत्तीय नागतो मत्तनागेन्द्रसमविक्रमः । प्रसन्ननयनः श्रीमान् तद्विवेश सहाङ्गनः॥११॥ कायोत्सर्गविधानेन प्रलम्बितभुजद्वयः । प्रशान्तहृदयः कृत्वा सामायिकपरिग्रहम् ॥१२॥ बद्ध्वा करद्वयाम्भोजकुड़मलं सह सीतया । अघप्रमथनं पुण्यं रामः स्तोत्रमुदाहरत् ॥१३॥
अथानन्तर समागमरूपी सूर्यसे जिसका मुखकमल खिल उठा था ऐसी सीताका हाथ अपने हाथसे पकड़ श्रीराम उठे और इच्छानुकूल चलनेवाले ऐरावतके समान हाथी पर बैठाकर . स्वयं उसपर आरूढ़ हुए। महातेजस्वी तथा सम्पूर्ण कान्तिको धारण करनेवाले श्रीराम हिलते हुए घंटोंसे मनोहर हाथीरूपी मेघपर सीतारूपी रोहिणीके साथ बैठे हुए चन्द्रमाके समान सुशोभित हो रहे थे ॥१-३॥ जिनकी बुद्धि स्थिर थी, जो अत्यधिक उन्नत प्रीतिको धारण कर रहे थे, बहुत भारी जनसमूह जिनके साथ था, जो चारों ओरसे बहुत बड़ी सम्पदासे घिरे थे, बड़ेबड़े अनुरागी विद्याधरोंसे अनुगत, उत्तम कान्तियुक्त चक्रपाणि लक्ष्मणसे जो सहित थे तथा अतिशय निपुण थे ऐसे श्रीराम, सूर्यके विमान समान जो रावणका भवन था उसमें जाकर प्रविष्ट हुए ॥४-६।। वहाँ उन्होंने भवनके मध्य में स्थित श्रीशान्तिनाथ भगवान्का परमसुन्दर मन्दिर देखा । वह मन्दिर योग्य विस्तार और ऊँचाईसे सहित था, स्वर्णके हजार खम्भोंसे निर्मित था, विशाल कान्तिका धारक था, उसको दीवालों के प्रदेश नानाप्रकारके रत्नोंसे युक्त थे, वह मनको आनन्द देनेवाला था, विदेह क्षेत्रके मध्यमें स्थित मेरुपर्वतके समान था, क्षीर समुद्रके फेनपटलके समान कान्तिवाला था, नेत्रों को बाँधनेवाला था, रुणझुण करनेवाली किङ्किणियों के समूह एवं बड़ी-बड़ी ध्वजाओंसे सुशोभित था, मनोज्ञरूपसे युक्त था तथा उसका वर्णन करना अशक्य था ।।७-१०॥
____तदनन्तर जो मत्तगजराजके समान पराक्रमी थे, निर्मल नेत्रोंके धारक थे तथा श्रेष्ठ लक्ष्मीसे सहित थे, ऐसे थीरामने हाथीसे उतरकर सीताके साथ उस मन्दिरमें प्रवेश किया ॥११॥ तत्पश्चात कायोत्सर्ग करनेके लिए जिन्होंने अपने दोनों हाथ नीचे लटका लिये थे और जिनका हृदय अत्यन्त शान्त था, एसे श्रीरामने सामायिककर सीताके साथ दोनों करकमलरूपी कुड्मलोंको जोड़कर श्रीशान्तिनाथ भगवानका पापभञ्जक पुण्यवर्धक स्तोत्र पढ़ा ॥१२-१३॥
१. भवनश्रुतेः म० । २. क्षीरोदकेन पटल •म•
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