________________
पद्मपुराणे
6
कृताञ्जलिपुटौ नौ सनृपौ साङ्गनाजनौ । मातृणां नेमतुः पादावुपगम्य क्रमेण तौ ॥५७॥ आशीर्वादसहस्राणि यच्छन्त्यः शुभदानि ताः । परिषस्वजिरे पुत्रौ स्वसंवेद्यमिताः सुखम् ॥५८॥ पुनः पुनः परिष्वज्य तृप्तिसम्बन्धवर्जिताः । चुचुम्बुर्मस्तके कम्पिकरामर्शनतत्पराः ॥ ५१ ॥ आनन्दवाष्पपूर्णाक्षाः कृतासनपरिग्रहाः । सुखदुःखं समावेद्य धृतिं ताः परमां ययुः ॥६०॥ मनोरथसहस्राणि गुणितान्यसकृत्पुरा । तासां श्रेणिक पुण्येन फलितानीप्सिताधिकम् ॥ ६१ ॥ सर्वाः सूरजनन्यस्ताः साधुभक्ताः सुचेतसः । स्नुषाशतसमाकीर्णा लक्ष्मीविभवसङ्गताः ॥६२॥ वीरपुत्रानुभावेन निजपुण्योदयेन च । महिमानं परिप्राप्ता गौरवं च सुपूजितम् ॥ ६३ ॥ चारोदसागरान्तायां प्रतिघातविवर्जिताः । चितावेकातपत्रायां ददुराज्ञां यथेप्सितम् ॥ ६४ ॥ आर्याच्छन्दः
१२२
इष्टसमागममेतं शृणोति यः पठति चातिशुद्धमतिः । लभते सम्पदमिष्टामायुः पूर्ण सुपुण्यं च ॥ ६५॥
एकोऽपि कृतो नियमः प्राप्तोऽभ्युदयं जनस्य सद्बुद्धेः । कुरुते प्रकाशमुच्चै रविवि तस्मादिमं कुरुत || ६६ ।।
इत्यार्षे रविषेणाचार्य प्रोक्ते पद्मपुराणे रामलक्ष्मणसमागमाभिधानं नाम द्रयशीतितमं पर्व ॥ ८२॥
कर नीचे आये और दोनोंने हाथ जोड़कर नम्रीभूत हो साथमें आये हुए समस्त राजाओं और अपनी स्त्रियोंके साथ क्रमसे समीप जाकर माताओंके चरणों में नमस्कार किया ॥५६-५७।। कल्याणकारी हजारों आशीर्वादोंको देती हुई उन माताओंने दोनों पुत्रोंका आलिङ्गन किया । उस समय वे सब स्वसंवेद्य सुखको प्राप्त हो रही थीं अर्थात् जो सुख उन्हें प्राप्त हुआ था उसका अनुभव उन्हींको हो रहा था - अन्य लोग उसका वर्णन नहीं कर सकते थे || ५८ ॥ वे बार-बार आलिङ्गन करती थीं फिर भी तृप्त नहीं होती थीं, मस्तक पर चुम्बन करती थीं, काँपते हुए हाथ से उनका स्पर्श करती थीं, और उनके नेत्र हर्षके आँसुओंसे पूर्ण हो रहे थे। तदनन्तर आसन पर आरूढ हो परस्परका सुख-दुःख पूछ कर वे सब परम धैर्यको प्राप्त हुई ॥५६-६० ॥ गौतम स्वामी कहते हैं कि हे श्रेणिक ! इनके जो हजारों मनोरथ पहले अनेकों बार गुणित होते रहते थे वे अब पुण्यके प्रभाव से इच्छासे भी अधिक फलीभूत हुए ॥ ६१ ॥ जो साधुओंकी भक्त थीं, उत्तम चित्तको धारण करनेवाली थीं, सैकड़ों पुत्र वधुओंसे सहित थीं, तथा लक्ष्मी के वैभवको प्राप्त थीं ऐसी उन वीर माताओंने वीर पुत्रोंके प्रभाव और अपने पुण्योदय से लोकोत्तर महिमा तथा गौरवको प्राप्त किया ||६२-६३ ॥ वे एक छत्रसे सुशोभित लवणसमुद्रान्त पृथिवीमें विना किसी बाधा के इच्छानुसार आज्ञा प्रदान करती थीं ||६४ || गौतम स्वामी कहते हैं कि अत्यन्त विशुद्ध बुद्धको धारण करनेवाला जो मनुष्य इस इष्ट समागमके प्रकरणको सुनता है अथवा पढ़ता है वह इष्ट सम्पत्ति पूर्ण आयु तथा उत्तम पुण्यको प्राप्त होता है ॥ ६५ ॥ सद्बुद्धि मनुष्यका किया हुआ एक नियम भी अभ्युदयको प्राप्त हो सूर्यके समान उत्तम प्रकाश करता है। हे भव्य जनो ! इस नियमको अवश्य करो || ६६ ||
Jain Education International
इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध, श्री रविषेणाचार्य द्वारा कथित पद्मपुराण में राम-लक्ष्मण के समागमका वर्णन करनेवाला व्यासीषाँ पर्व समाप्त हुआ। ॥८२॥
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org