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पद्मपुराणे
मायाप्रवीणया तावद्देव्या क्रन्दितमुन्नतम् । वन्दिकोऽयमिति त्रस्तो गृहीतश्च भटैरसौ ॥१५॥ अष्टाङ्गनिग्रहं कर्तुं नगरीतो बहिः कृतः । सेवितेनासकृदृष्टः कल्याणाख्येन साधुना ॥१६॥ यदि प्रव्रजसीत्युक्त्वा तेनासौ प्रतिपन्नवान् । राज्ञः करमनुष्येभ्यो मोचितः 'श्रमणोऽभवत् ॥१७॥ सोऽतिकष्टं तपः कृत्वा महाभावनयान्वितः । अभूतुविमानेशः किन्नु धर्मस्य दुष्करम् ॥१८॥ मथुरायां महाचित्तश्चन्द्रभद्र इति प्रभुः । तस्य भार्या धरा नाम यस्तस्याश्च सोदराः ॥१६॥ सूर्याब्धियमुनाशब्दैर्देवान्तै मभिः स्मृता । श्रीसत्स्विन्द्रप्रभोनार्का मुखान्ताश्वापराः सुताः ॥२०॥ द्वितीया चन्द्रभद्स्याद्वितीया कनकप्रभा । आगत्यतु विमानात् स तस्यां जातोऽचलाभिधः ॥२१॥ कलागुणसमृद्धोऽसौ सर्वलोकमनोहरः । बभौ देवकुमाराभः सत्क्रीडाकरणोद्यतः ॥२२॥ अथान्यः कश्चिदङ्काख्यः कृत्वा धर्मानुमोदनम् । श्रावस्त्यामङ्गिकागर्ने कम्पे नापाभिधोऽभवत् ॥२३॥ कवाटजीविना तेन कम्पेनाविनयान्वितः । अपो निर्घाटितो गेहाद् दुगाव भयदुःखितः ॥२४॥ अथाचलकुमारोऽसौ नितान्तं दयितः पितुः । धराया भ्रातृभिस्तैश्च मुखान्तैरष्टभिः सुतैः ॥२५॥ ईष्यमाणो रहो हन्तु मात्रा ज्ञात्वा पलायितः । महता कण्टकेनानौ ताडितस्तिलके वने ॥२६॥
रानीके साथ जिस समय एक आसनपर बैठा था उसी समय राजा भी कहींसे अकस्मात् आ गया और उसने उसकी वह चेष्टा देख ली ॥१४॥ यद्यपि मायाचारमं प्रवीण रानीने जोरसे रोदन करते हुए कहा कि यह वन्दी जन है तथापि राजाने उसका विश्वास नहीं किया और योद्धाआंने उस भयभीत ब्राह्मणको पकड़ लिया ॥१५॥ तदनन्तर आठों अङ्गोका निग्रह करनेके लिए वह कुलन्धर विप्र नगरीके बाहर ले जाया गया वहाँ जिसकी इसने कई बार सेवा की थी ऐसे कल्याण नामक साधुने इसे देखा और देखकर कहा कि यदि तू दीक्षा ले ले तो तुझे छुड़ाता हूँ । कुलन्धरने दीक्षा लेना स्वीकृत कर लिया जिससे साधुने राजाके दुष्ट मनुष्योंसे उसे छुड़ाया और छुड़ाते ही वह श्रमण साधु हो गया ॥१६-१७॥ तदनन्तर बहुत बड़ी भावनाके साथ अत्यन्त कष्टदायी तप तपकर वह सौधर्मस्वर्गके ऋतुविमानका स्वामी हुआ सो ठीक ही है क्योंकि धर्मके लिए क्या कठिन है ? ॥१८॥
अथानन्तर मथगमें चन्दभद नामका उदारचित्त राजा था, उसकी स्त्रीका नाम धरा था और धके तीन भाई थे-सूर्यदेव, सागरदेव और यमुनादेव । इन भाइयोंके सिवाय उसके श्रीमुख, सन्मुख, सुमुख, इन्द्रमुख, प्रभामुख, उग्रमुख, अर्कमुख और अपरमुख ये आठ पुत्र थे । ॥१६-२०।। उसी चन्द्रभद्र राजाकी द्वितीय होने पर भी जो अद्वितीय-अनुपम थी ऐसी कनकप्रभा नामकी द्वितीय पत्नी थी सो कुलंधर विप्रका जीव ऋतु-विमानसे च्युत हो उसके अचल नामका पुत्र हुआ ॥२१॥ वह अचल कला और गुणोंसे समृद्ध था, सब लोगोंके मनको हरनेवाला था और समीचीन क्रीड़ा करनेमें उद्यत रहता था इसलिए देव कुमारके समान सुशोभित होता था ॥२२॥
अथानन्तर कोई अङ्क नामका मनुष्य धर्मको अनुमोदना कर श्रावस्ती नामा नगरीमें कम्प नामक पुरुषकी अङ्गिका नामक स्त्रीसे अप नामका पुत्र हुआ ॥२३।। कम्प कपाट बनानेकी आजीविका करता था अर्थात् जातिका बढ़ई था और उसका पुत्र अत्यन्त अविनयी था इसलिए उसने उसे घरसे निकाल दिया था। फलस्वरूप वह भयसे दुखी होता हुआ इधर-उधर भटकता रहा ॥२४॥ अथानन्तर पूर्वोक्त अचलकुमार पिताका अत्यन्त प्यारा था इसलिए इसकी सौतेली माता धराके तीन भाई तथा मुखान्त नामको धारण करनेवाले आठों पुत्र एकान्तमें मारनेके लिए उसके साथ ईर्ष्या करते रहते थे। अचलकी माता कनकप्रभाको उनकी इस ईर्ष्याका पता चल गया १. भ्रमणो म० । २. दृष्यमाणो म० । For Private & Personal Use Only
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