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एकनवतितमं पर्व
श्रुत्वा परमं धर्म न भवति येषां सोहिते प्रीतिः । शुभनेत्राणां तेषां रविरुदितोऽनर्थकी भवति ॥५१॥
इत्यार्षे श्रीरविषेणाचार्य प्रोक्ते पद्मपुराणे शत्रुघ्नभवानुकीर्तनं नामैकनवतितमं पर्व ॥ ६१॥
हो ||१०|| गौतम स्वामी कहते हैं कि इस परमधर्मको सुनकर जिनको उत्तम चेष्टा में प्रवृत्ति नहीं होती शुभ नेत्रोंको धारण करनेवाले उन लोगोंके लिए उदित हुआ सूर्य भी निरर्थक हो जाता है ॥५.१||
इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध रविषेणाचार्य द्वारा कथित पद्मपुराणमें शत्रुघ्न के भवका वर्णन करनेवाला एकानबेवाँ पर्व समाप्त हुआ || १॥
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