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पद्मपुराणे
उपजातिः एवं स्वपुण्योदययोग्यमाप्ता राज्यं नरेन्द्राश्चिरमप्रकम्पम् । रामानुमत्या बहुलब्धहर्षास्तस्थुर्यथास्वं निलयेषु दीक्षाः ॥४३॥ पुण्यानुभावस्य फलं विशालं विज्ञाय सम्यग्जगति प्रसिद्धम् ।
कुर्वन्ति ये धर्मरति मनुष्या रवेद्युति ते जनयन्ति तन्वीम् ॥४४॥ इत्याचे श्रीरविषेणाचार्यप्रोक्त पद्मपुराणे राज्याभिषेकाभिधानं विभागदर्शनं नाम
अष्टाशीतितमं पर्व ॥८॥
इस प्रकार जो अपने-अपने पुण्योदयके योग्य चिरस्थायी राज्यको प्राप्त हुए थे तथा रामचन्द्र जीकी अनुमतिसे जिन्हें अनेक हर्षके कारण उपलब्ध थे ऐसे वे सब देदीप्यमान राजा अपने-अपने स्थानों में स्थित हुए ॥४३॥ गौतम स्वामी कहते हैं कि जो मनुष्य जगतमें प्रसिद्ध पुण्यके प्रभावका फल जानकर धर्ममें प्रीति करते हैं वे सूर्यकी प्रभाको भी कृश कर देते हैं ॥४४॥ इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध, श्रीरविपेणाचार्य द्वारा कथित पद्मपुराणमें राज्याभिषेकका वणेन करनेवाला तथा अन्य राजाओं के विभागको दिखलानेवाला
अठासीवाँ पर्व समाप्त हुआ ॥८॥
१. तन्वम् म०।
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