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१.८
पद्मपुराणे
आर्याच्छन्दः ईडग्गुणो विधिज्ञः प्रासुविहारी मयः प्रशान्तात्मा । पण्डितमरणं प्राप्तोऽभूदीशाने सुरश्रेष्ठः ॥२०॥ एतन्मयस्य साधोर्माहात्म्यं ये पठन्ति सञ्चित्ताः ।
अरयः क्रव्यादा वा हिंसन्ति न तान् कदाचिदपि ॥२०॥ इत्याचे रविषेणाचार्यप्रोक्त पद्मपुराणे मयोपाख्यानं नामाऽशीतितमं पर्व ॥८॥
पोदनपुर अत्यन्त शान्त हो गया तथा धर्ममें उसका चित्त लग गया ॥२०७। इस प्रकारके गुणोंसे युक्त, धर्मकी विधिको जाननेवाले, प्रशान्त चित्त तथा पासुक स्थानमें बिहार करनेवाले मय मुनिराज, पण्डित मरणको प्राप्त हो श्रेष्ठ देव हुए ॥२०८।। इस तरह जो उत्तम चित्त होकर मय मुनिराजके इस माहात्म्यको पढ़ते हैं, शत्रु अथवा मांसभोजी सिंहादि उनकी कभी भी हिंसा नहीं करते ॥२०६॥
इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध, रविषेणाचार्य द्वारा कथित पद्मपुराणमें मय मुनिराजका
वर्णन करनेवाला अस्सीवाँ पर्व समाप्त हुआ ॥८॥
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