________________ पूर्यन्ते येन कृपणा-स्तदुपेक्षैव पूर्णता। पूर्णानन्दसुधास्निग्धा, दृष्टिरेषा मनीषिणाम् // 5 // . . धन-धान्य में लोभी पुरुष निज पूर्णता है मानता। उन साधनों की जो उपेक्षा करे वह है पूर्णता॥ आनंद अमृत पूर्ण पाकर स्निग्ध दृष्टि हो गई। वे तत्त्व दृष्टा पूर्ण ज्ञानी दोष दृष्टि खो गई॥५॥ जिस धन धान्य को पाकर कृपण लोग पूर्णता का अनुभव करते हैं, उन्हीं बाह्य पदार्थों की उपेक्षा करके ज्ञानी पुरुष पूर्णता का अनुभव करते हैं। ऐसी पूर्णता के आनंद रूप अमृत से स्निग्ध दृष्टि तत्त्व ज्ञानियों/मनीषियों की होती है। An avaricious man lost in his wealth and luxuries considers himself complete whereas the wise men who ignore these amenities' acquire knowledge and a discerning eye which helps them shed illusion. 151