________________ न सुषुप्तिरमोहत्वान्नापि च स्वापजागरौ। कल्पनाशिल्पविश्रान्तेस्तुर्यैवानुभवो दशा॥ // अनुभव दशा है मोह विरहित गाढ निद्रा है नहीं। अनुभव दशा है कल्पना का शिल्प भी चलता नहीं। इसलिये स्वप्न भी है न है ना जागति फिर क्या दशा / निद्रा न जागृति स्वप्न है, अनुभव परम चौथी दशा / / 7 / / यह अनुभव मोह रहित होने से निद्रा रूप सुषुप्ति दशा नहीं है, कल्पना रूप कला का भी इसमें अभाव होने से स्वप्न अथवा जागृत दशा भी नहीं हैं। यह तो चौथी दशा ही है। This direct experience of knowing the soul or the self being devoid of attachment, is not a sleep like state. Being devoid of imagination and fantasies it is neither a dream like state nor wakefulness. It is definitely a fourth dimension. {207}