________________ मदस्थानभिदात्यागैर्लिखाने चाष्टमङ्गलम्। ज्ञानाग्नौ शुभसङ्कल्पकाकतुण्डंच धूपय॥ 4 // वर स्वस्तिकादि अष्ट मंगल आत्म मख लेखन करो। यों आठ मद के स्थान का परित्याग कर मंगल भरो। श्रुत आग में संकल्प का कृष्णागरू का धूप कर। आनंद पाओ यों निजातम देव अंग सुपूज कर // 4 // उस परमात्मा के सामने आठ मद स्थानों के त्याग रूप अष्ट मंगल का आलेखन कर और ज्ञान रूप अग्नि में शुभ संकल्प रूप कृष्णागरु का धूप कर। Draw before the conceptual form of pure soul the eight auspicious things in the form of abandonment of eight types of egos. Offer the insence by burning the fragrant powder of good resolution in the fire of knowledge. - (228}