________________ श्रेयः सर्वनयज्ञानां, विपुलं धर्मवादतः। शुष्कवादांद्विवादाच्च, परेषां तु विपर्ययः // 5 // ज्ञाता सकल नय वाद के जो धर्मवाद सदा करे। कर धर्मवाद करे स्वपर कल्याण मन अमृत भरे / एकांत दृष्टि बनी जिन्हों की शुष्क वाद किया करे। हठवाद शुष्क विवाद से जग में अमंगल ही भरे / / 5 / / सभी नयों को जानने वालों का धर्मवाद से बहुत कल्याण होता है। अन्य एकान्त दृष्टि वालों का तो शुष्कवाद और विवाद से अकल्याण ही होता है। Those who know all the Nayas are followers of true spiritualism that is beneficent. Those who are confined to the bias of one specific Naya invite harm through abstract logic and dry debate. {253}