________________ अमूढलक्ष्याः सर्वत्र, पक्षपातविवर्जिताः। जयन्ति परमानन्दमयाः सर्वनयाश्रयाः॥8॥ चूके नहीं निज लक्ष्य को जो पक्षपात रखे नहीं। आनंद में बन मगन मन सर्वत्र जो नभ तल मही॥ शुभ ज्ञान परिणति रूप निर्मल भूमिका आधार है। जाता कल नय के जो हैं उनकी सदा जयकार है / / 8 / / जो लक्ष्य से विचलित नहीं है, सर्वत्र पक्षपात से रहित है, परमानन्द रूप सभी नयों के आश्रय भूत ऐसे ज्ञानी जयवन्त रहते हैं। who are unwavering in pursuit of their goal, who are always and everywhere unbiased, who are the adodes of the blissful unison of all Nayas, they are always successful. They are always victorious. {2561