________________ उपसंहार पूर्ण मगन स्थिर मोह-त्याग युत ज्ञान शान्त इन्द्रिय-जेता। त्याग क्रिया रत तृप्त बने निलेप निःस्पृही मन वेत्ता। विद्या युत मुनि विवेकधारी. है मध्यस्थ भयमुक्त मुनि। आत्म-निंदना तत्त्व-दृष्टि समृद्धिवान् मुनि महागुणी॥1॥ कर्म विपाकी ध्यान मग्न उद्विग्न बने भवसागर से। लोक-रंजना मुक्त युक्त शास्त्रों से मुक्त परिग्रह घर से॥ अनुभव योग नियाग भाव वर ध्यान तपस्या संयुत है। सर्वनयाश्रय इन बत्तीसों से मुनि प्रतिपल अच्यत है।।2। इसके चिंतन से प्रतिपल बनता है साधु विमल अमल। प्रकृति से विकृति मिट जाती संस्कृति धार बहे कल कल // नित्य करे स्वाध्याय ग्रन्थ का दृढ़ चारित्र बने मुनिवर। ज्ञान-क्रिया के सुगम योग से प्राप्त करे पद अजरामर / / 3 / Epilogue : The thirty two subjects discussed in this book and listed here are the virtues that make the foundation on which the edifice of spiritualism is raised. The ascetic who understands and absorbs and follows it can be steadfast in his practices. Through daily reading and pondering over it an ascetic may go far in his pursuit of the goal of liberation. - {257}