________________ इत्थं च दुःखरूपत्वात्, तपो व्यर्थमितीच्छताम्। बौद्धानां निहता बुद्धिर्बोधानन्दाऽपरिक्षयात् // 5 // आनंद का नहीं नाश होता देख बौद्ध विचारते। कुंठित बनी उनकी मति ज्ञानी पुरुष धिक्कारते॥ तप दुःख रूपी मात्र है, यों बौद्ध जन जो मानते। तप का न कोई अर्थ है निष्फल उसे वे जानते // 5 // “इस प्रकार दुःख रूप होने से तप निष्फल है" ऐसी मान्यता वाले बौद्धों की बुद्धि कुंठित बनी हुई है क्योंकि बुद्धि जनित अन्तरंग आनंद की धारा कभी खण्डित नहीं होती। (अर्थात् तप में भी आत्मिक आनंद की धारा अखण्डित होती है) The beleif that being a source of pain penance is worthless has dulled the wit of Buddhists. They forget that the inner stream of bliss flowing out of wisdom is never blocked, not even by penance. {245}