Book Title: Gyansara
Author(s): Maniprabhsagar, Rita Kuhad, Surendra Bothra
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 270
________________ धनार्थिनां यथा नास्ति, शीततापादि दुस्सहम्। तथा भवविरक्तानां, तत्त्वज्ञानार्थिनामपि // 3 // इस जगत में धन प्राप्ति के पीछे मनुज जो दौड़ते। नहिं ताप की नहीं शीत की परवाह हृदय में धारते॥ जग से विरक्ति मन भरी वे तत्त्व-ज्ञानार्थी सदा। हो शीत चाहे ताप हो दुःसह नहीं लगते कदा // 3 // जिस प्रकार धन के अभिलाषी के लिये सर्दी गर्मी आदि के कष्ट दुस्सह नहीं होते उसी प्रकार संसार से विरक्त तत्त्व ज्ञान के अभिलाषी (साधकों) के लिये भी कोई कष्ट दुस्सह नहीं होता। The desire and pursuit of wealth makes the pain of heat or cold tolerable. Similarly for the detached ones in pursuit of spiritual knowledge there is no pain difficult to tolerate. {243}

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