________________ तप-31 ज्ञानमेव बुधाः प्राहुः, कर्मणां तापनात्तपः / तदाभ्यन्तरमेवेष्टं, बाह्यं तदुपबृंहकम् // 1 // जो कर्म का पातन करे उस ज्ञान को ही तप कहा। तप अन्तरंग ही इष्ट है पंडित करे महिमा महा।। अन्तर् तपस्या को बढ़ावे बाह्य तप तो तप सही। पर इष्ट अन्तर् मात्र है तेप बाह्य का साधन ग्रही।।1। कर्मों को तापने वाला होने से तप यह ज्ञान ही है ऐसा ज्ञानियों ने कहा है।(तप के दो भेदों में से) अन्तरंग तप ही इष्ट है, बाह्य तप तो उसका सहायक अर्थात् उसकी वृद्धि करने वाला है। Penance As it burns Karmas, Tap (penance) is nothing but knowledge, so say the sages. Out of the two types the desired one is the inner penance. The outer one is only of supportive nature. {241}