________________ आनुश्रोतसिकी वृत्तिर्बालानां सुखशीलता। प्रातिश्रोतसिकी वृत्तिज्ञानिनां परमं तपः // 2 // जो लोक धारा का करे अनुसरण वे अनजान हैं। सुख शील में डूबा रहे अज्ञान पूरित गान है। पर गुरु ज्ञानी प्रवाह सम्मुख अभय निर्भय चालते। उनका परम उत्कृष्ट तप है ताप से अघ तापते // 2 // सुखशीलता भरी संसार के प्रवाह का अनुसरण करने वाली वृत्ति अज्ञानियों की होती है और संसार के प्रवाह के विपरीत अर्थात् सम्मुख ऐसा परम तप यह ज्ञानियों की वृत्ति हैं। To follow the pleasure seeking tendencies is for ingnorants. To go against the mundane flow is the ultimate penance done by the sages. {242}