________________ पृथग्नया मिथ: पक्ष-प्रतिपक्षकदर्थिताः। / समवृत्तिसुखाऽऽस्वादी, ज्ञानीसर्वनयाश्रितः // 2 // सब नय परस्पर वाद से प्रतिवाद से हो विडम्बना। ज्ञानी मुनि मन में रखे सुख लीन बन सम भावना। ज्ञानी सदा माने हैं सच्चे नय सभी निज अर्थ में। ज्ञानी नयाश्रित मानता फिर द्वेष क्यों हो व्यर्थ में // 2 // अलग-अलग नय परस्पर वाद प्रतिवाद से विडंबित हैं। समभाव के सुख का अनुभव करने वाले महामुनि सर्व नयों के आश्रित होते Individual Nayas are plagued with ambiguity arising out of clash of purpose. The great sages embracing all Nayas enjoy the bliss of equanimity. {250}