Book Title: Gyansara
Author(s): Maniprabhsagar, Rita Kuhad, Surendra Bothra
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 275
________________ मूलोत्तरगुणश्रेणिप्राज्यसाम्राज्यसिद्धये। बाह्यमाभ्यन्तरं चेत्थं, तपः कुर्याद् महामुनिः / / 4 // निज में रमे जो मूल गुण उत्तर गुणों की वृद्धि हो। गुण राज्य की सुविशालता की एक मन में सिद्धि हो। इसलिये साधु करे सदा तप बाह्य आभ्यन्तर युगल। तप जो करे वो महान है, मिट जाय सारा कर्म मल // 8 // मूल गुण और उत्तर गुण की श्रेणि रूप विशाल साम्राज्य की सिद्धि के लिये महामुनि बाह्य और आभ्यन्तर तप करें। The great sages indulge in inner and outer penance in order to acquire the great empire of fundamental and resultant virtues. {248}

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