________________ मणाविव प्रतिच्छाया, समापत्तिः परात्मनः। क्षीणवृत्तौ भवेद् ध्यानादन्तरात्मनि निर्मले॥ 3 // मणि में पड़े ज्यों बिंब का प्रतिबिंब निर्मल सुन्दरम्। हो जाय नष्ट मलीन वृत्ति निजात्म तो बनती वरम्॥ 'निर्मल विमल मन में पड़े प्रतिबिंब प्रभुवर का परम्। वह ध्यान कहलाता. समापत्ति परम सुखसागरम् // 3 // जिस प्रकार मणि में अन्य वस्तु का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है उसी प्रकार क्षीण वृत्ति वाले शुद्ध-निर्मल अन्तरात्मा में ध्यान द्वारा परमात्मा का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है, इसी को समापत्ति कहते हैं। As in a clear rock-crystal bead is seen a reflection of other things, in a pure soul with vanishing desires is seen the reflection of the super-soul. This is termed as Samapatti or fusion. {235)