________________ | ध्यान-30/ ध्याता ध्येयं तथा ध्यानं, त्रयं यस्यैकतां गतम्। मुनेरनन्यचित्तस्य, तस्य दुःखं न विद्यते // 1 // ध्याता वही है ध्येय भी है ध्यान भी जिसके वही। तीनों ही जिनके एक हैं वे दुःख पा सकते नहीं। मुनिराज जो इक चित्त हैं निज आत्म में लयलीन हैं। उनके हृदय में ध्यान की सुख की बजे नित बीन है॥1॥ ध्याता ध्येय और ध्यान इन तीनों की एकरूपता को जिसने प्राप्त कर लिया है ऐस एकाग्रचित्त मुनि को कोई दुःख नहीं होता। Meditation * That absolutely poised ascetic who accomplishes the fusion of subject, object and process in meditation, becomes free of all sorrows. {233}