________________ इत्थं ध्यानफलाद्युक्तं, विंशतिस्थानकाद्यपि। कष्टमात्रं त्वभव्यानामपि नो दुर्लभं भवेत्॥ 5 // वर वीशस्थानक साधना भी ध्यान फल से युक्त है। जो भव्य प्राणी साधते बनते करम से मुक्त है। दुर्लभ नहीं जग में अभव्यों के लिए यह साधना। शिवफल उन्हें मिलता न होती कष्ट कर आराधना // 5 // इस प्रकार के ध्यान फल से ही वीशस्थानक आदि तप भी योग्य हैं। कष्ट मात्र रूप तप तो इस संसार में अभव्यों को भी दुर्लभ नहीं हैं। The penances like Vishasthanak are also beneficial like the results of such meditation. And there are other simple penances which are not impossible to do even for the unworthy. {237}