________________ स्फुरन् मङ्गलदीपं च, स्थापयानुभवं पुरः। योगनृत्यपरस्तौर्यत्रिकसंयमवान्भव॥6॥ * अनुभव स्वरूपी दीप मंगल आत्म सम्मुख प्रगट कर। फिर योग संयम रूप नाटक पूजना श्रद्धान भर॥ संगीत भी वर नृत्य भी वाजिंत्र भी एकत्र हो। तीनों के ऐक्य समान संयमी जो बनो शिर छत्र हो।6।। अनुभव रूप स्फुरायमान् मंगल दीप की शुद्ध आत्म देव के समक्ष स्थापना कर। संयम योग रूप नाट्य पूजा में तत्पर बना हुआ तूं गीत नृत्य और वांजिंत्र इन तीनों के समूह के जैसा संयम वाला बन। Install the burning auspicious lamp of experience before the pure soul. Then prepare yourself for the Natya-Puja (ritiual worship by music and dance) by disciplining yourself like the synchronized song, dance and orchestra (choreography). (230}