________________ प्राग्धर्मलवणोत्तारं, धर्मसन्यासवह्नियना। कुर्वन् पूरय सामर्थ्यराजन्नीराजनाविधिम्॥ 5 // संन्यास धर्म स्वरूप अग्नि. आत्म सम्मुख प्रगट कर / क्षय और उपशम धर्म रूपी लवण उस अग्नि से हर // सामर्थ्य योग स्वरूप फिर विधि आरती की पूर्ण कर। आनंद पाओ यों निजातम देव अंग सुपूज कर / / 5 // धर्म संन्यास रूप अग्नि के द्वारा पूर्व का क्षायोपशमिक धर्म रूप लून उतारता हुआ सामर्थ्य योग रूप देदीप्यमान आरती की विधि पूर्ण कर। Perform the brilliant Arati-ritual in the form of proficiency in Yoga by curing it with the fumes of the .state of disciplining and destroying the past karmas, emanating out of the fire of asceticism. (229)