________________ क्षमापुष्पस्रजं धर्मयुग्मक्षौमद्वयं तथा। ध्यानाभरणसारं चं, तदङ्गे विनिवेशय / / 3 // माला सुगन्धित पुष्प की रूपी क्षमा की नित चढ़ा। निश्चय तथा व्यवहार रूपी वस्त्रद्वय निज हित चढ़ा // सद् ध्यान रूपी श्रेष्ठ भूषण कंठ में आरोप कर। आनंद पाओ यों निजातम देव अंग सुपूज कर / / 3 / / उस शुद्ध आत्म देव को क्षमा रूप फूल की माला अर्पण कर, निश्चय और व्यवहार धर्म रूप दो वस्त्र तथा ध्यान रूप श्रेष्ठ अलंकार अर्पण कर। To that pure soul offer the garland of the flowers of benevolence, two aparrels of ultimate and mundane viewpoints, and the best ornament of meditation. {22}