________________ भावपूजा-29 - दयाम्भसा कृतस्नानः, सन्तोषशुभवस्त्रभृत्। विवेकतिलकधाजी, भावनापावनाशयः // 1 // जल ले दया का स्नान कर संतोष उज्ज्वल चीर धर। निज भाल को सुविवेक रूपी तिलक से संयुक्त कर // आशय परम पावन हृदय की शुद्धतम हो भावना। तुम रोज निज सुविशुद्ध आतम की करो शुभ पूजना / / 1 / / दया रूपी पानी से जिसने स्नान किया है, संतोष रूप उज्ज्वल वस्त्र धारण लिये हैं, विवेक रूप तिलक से शोभायमान है, शुभ भावनाओं से पवित्र आशय वाला है। Spiritual Worship Taking a bath with the water of compassion, wearing the clean white dress of contentment, painting the Tilak (a spot of paint on the forehead) of rational judgement on the forehead, and with a purpose purified by auspicious intent worship your own purified self. {225}