________________ भिन्नोद्देशेन विहितं, कर्म कर्मक्षयाक्षमम्। क्लृप्तभिन्नाधिकारं च, पुढेष्टयादिवदिष्यताम्॥5॥ ऐसी क्रिया से मोक्ष का उद्देश्य है जिसमें नहीं। नहीं कर्म का क्षय हो सके, आधार अनुचित है सही। पुत्रेष्टि यज्ञ से ज्यों कभी क्षय कर्म का होता नहीं। फिर अन्य लक्षित कर्म से क्षय कर्म होता है कहीं।। 5 / / भिन्न यज्ञ से किया गया अनुष्ठान कर्म क्षय करने में असमर्थ होता है। जैसे भिन्न अधिकार की कल्पना वाला पुत्र प्राप्ति के लिये किया जाने वाला यज्ञ। Performance of the yajna ritual for some specific purpose does not help wiping of Karmas. As it can not be expected of the son-giving yajna: to yield any thing other than a son. .{221}