________________ ब्रह्मयज्ञः परं कर्म, गृहस्थस्याधिकारिणः / पूजादि वीतरागस्य, ज्ञानमेव तु योगिनः // 4 // अधिकार प्राप्त गृहस्थ श्री जिनराज की पूजा करे। वो ब्रह्म यज्ञ क्रिया कहावे जो सुश्रावक आदरे। पर योगिराजों के लिये तो ज्ञान ही सब सार है। वर ज्ञान ही है ब्रह्म यज्ञ करे तिरे संसार है।।4।। अधिकारी गृहस्थ को मात्र वीतराग की पूजा आदि क्रिया ब्रह्म यज्ञ है और योगी के लिये तो ज्ञान ही ब्रह्म यज्ञ है। For the worthy house-holder the worship of the Vitaraga and other related activities are like ultimate yajna. For a Yogi the true knowledge is the ultimate yajna. {220}