________________ प . ब्रह्मार्पणमपि . ब्रह्म-यज्ञान्तर्भावसाधनम्। ब्रह्मग्नौ कर्मणो युक्तं, स्वकृतत्वस्मये हुते॥6॥ निज में छिपे मद मान को ही यज्ञ में होमो सदा। सब ब्रह्म को अर्पण करो यह ब्रह्म यज्ञ परम मुदा / कर्तापने का भाव रूपी मान जब जलता रहे। वर ब्रह्म रूपी आग में तो ब्रह्म यज्ञ मनसि बहे // 6 // ब्रह्म यज्ञ में अन्तर भाव का साधन ब्रह्म को अर्पण करना भी ब्रह्म रूप अग्नि में कर्म का और स्व कर्तृत्व के अहंकार का हवन करने पर ही युक्त होता है। The ultimate (Brahma) yajna, where all feelings and thoughts are amalgamated in the Brahma (the creator), can be performed only if all the Karmas and the ego of being the "doer" are vanquished in the ultimate fire. {222}