________________ पापध्वंसिनि निष्कामे, ज्ञानयज्ञे रतो भव। सावधैः कर्मयज्ञैः किं, भूतिकामनयाविलैः // 2 // उस ज्ञान में अनुरक्त बन जो पाप का ध्वंसन करे। वह यज्ञ ही वर यज्ञ है जो कामनाओं को हरे॥ सुख कामना युत पाप संयुत यज्ञ से क्या काम है ? रे चेत मानव यज्ञ तो वह कर्म-बन्धन धाम है।।2।। पाप का नाश करने वाला और कामना रहित ऐसे ज्ञान यज्ञ में तूं आसक्त बन / सुख की इच्छा द्वारा मलिन बने पाप सहित कर्म यज्ञों का क्या काम है ? Indulge in the yajna of knowledge that is devoid of desires and destroys sins. Of what use are the mundane or ritual yajnas that are tarnished with desire for pleasure and are full of sins ? {218}