________________ | नियाग-28 यः कर्म हुतवान् दीप्ते, ब्रह्माग्नौ ध्यानध्याय्यया। स निश्चितेन यागेन, नियागप्रतिपत्तिमान् // 1 // उद्दीप्त कर ली है जिन्होंने ब्रह्म रूपी आग को। वे ध्यान रूपी वेद ऋच से होमते सब कर्म को॥ निज की नियाग परम दशा मुनिराज वे ही पा गये। निज भाव याग नियाग है कर शुद्ध पावन वे भये / / 1 / / 'जिसने प्रदीप्त ब्रह्म रूप अग्नि में ध्यान रूप वेद के मंत्र द्वारा कर्मों का होम किया हैं उस मुनि ने निश्चित ही भाव यज्ञ द्वारा नियाग को प्राप्त किया है। Liberation The sage who has offered karmas as oblution purifying them with meditation as the mantra from Vedas to the burning pyre in the form of Brahma has certainly earned liberation through the spiritual yajna. (217)