________________ प्रीतिभक्तिवचोऽसङ्गगैः, स्थानाद्यपि चतुर्विधम्। तस्मादयोगयोगाप्तेर्मोक्षयोगः क्रमाद् भवेत्॥7॥ हैं प्रीति भक्ति वचन असंग प्रकार चार विवेचना। ये स्थान आदिक योग में है भेद तत्त्व विचारणा // इस योग से क्रमशः अयोग स्वरूप योग मिले तदा। मिलता परम पद मोक्ष तब निज में मगन रहता सदा॥7॥ प्रीति, भक्ति, वचन तथा असंग अनुष्ठान ये स्थानादि योग के चार प्रकार हैं। उस योग से योग-निरोध रूप योग की प्राप्ति होने से क्रमश: मोक्ष योग प्राप्त हो जाता है। * There are four of space yogas-fondness, devotion, word, solitude. With the help of these practices, detachment results and it gradually evolves into the ultimate moksha yoga. (215)