________________ वेदोक्तत्वान्मनःशुद्ध्या, कर्मयज्ञोऽपि योगिनः / ब्रह्मयज्ञ इतीच्छन्तः, श्येनयागं त्यजन्तिं किम् ? // 3 // कोई कहे ये यज्ञ वेदों से कथित करणीय है। मनशद्धि द्वारा कर्म यज्ञ भी 'ब्रह्म' से तुलनीय है। जो ज्ञान योगी है उसे कुछ यज्ञ दोष लगे नहीं। फिर श्येन यज्ञ का त्याग क्यों वे अज्ञ नर करते सही / / 3 / / वेदोक्त होने से मन की शुद्धि द्वारा किया गया कर्म-यज्ञ भी ज्ञान योगी के लिये ब्रह्म यज्ञ समान है, ऐसा मानने वाले श्येन यज्ञ का फिर क्यों त्याग करते हैं। There are those who propagate that, for a spiritual practitioner even the ritual-yajna as per the Vedas done with pure heart is like the ultimate yajna (Brahma yajna). Why, then, they abandon the sacrificial yajnas ?' (219)