________________ अर्थालम्बनयोश्चैत्यवन्दनादौ विभावनम्। श्रेयसे योगिनः स्थानवर्णयोर्यत्न एव च // 5 // जिन चैत्यवंदन आदि शुभ अनुष्ठान में सुमिरण करें। वर अर्थ आलंबन स्मरण कल्याण शुभ मन में भरें। निज स्थान में हो वर्ण में शुभ यत्न शुभ एकाग्रता। उन योगिजन को प्राप्त हो कल्याण का स्थायी पता // 5 // चैत्यवंदन आदि क्रियाओं में अर्थ और आलम्बन का स्मरण करना तथा स्थान और वर्ण में उद्यम करना यही योगियों के लिये कल्याण कर है। During the acts like worship in a temple it is beneficial for a yogi to remember the meaning and the path. During practices it is beneficial to remember the colour and the space. (213}