________________ जातिचातुर्यहीनोऽपि, कर्मण्यभ्युदयावहे। क्षणाद्रकोऽपि राजा स्याच्छत्रच्छन्नदिगन्तरः // 3 // जब उदय कारक कर्म का होता उदय तब प्राप्त हो। चतुराई से भी जाति से भी हीन बनता आप्त हो। क्षण में बने नृप रंक भी शुभ कर्म का जब उदय हो। दिशि क्षेत्र ढंकता छत्र से जग सकल में जय विजय हो।।3।। अभ्युदय करने वाले कर्म का उदय होने पर जातिहीन, चातुर्य हीन और रंक होने पर भी क्षण भर में समस्त दिशाओं को छत्र से अविच्छिन्न करने वाला राजा बन जाता है। When karma generated effects so compel, even a lowly and dull tramp can, in a matter of moments, turn into an all powerful emperor whose umbrella like regime extends into each direction. ' {163)